Shailaja Bhattad

Abstract

3.5  

Shailaja Bhattad

Abstract

गुलदस्ते

गुलदस्ते

1 min
3.2K


सब तरफ से ईंटें उठती रही

हम थे कि अनजान ही बने रहे। 

अब फूलों से रास्ते सजते हैं

कभी-कभी तो गुलदस्ते भी मिलते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract