गुलाब और कांटा
गुलाब और कांटा
मैंने पूछा गुलाब से इतनी सुन्दर हो तुम
फिर ये कांटे लिए क्यों खड़ी हो तुम
गुलाब ने हंस कर ये पगली नादान हो तुम
इस दुनिया से अनजान हो तुम
यंहा कांटे नहीं रखवाले है
जंगली से मुझे बचाते है
सुनकर गुलाब की बात सन्न होइ
दिल ही दिल बेचैन होइ
पढ़ा था खबर जो रेप का
देखा था जो चेहरा बच्ची का
बिल्कुल थी गुलाब की तरह
नाजुक और प्यारी।