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Shyam Kunvar Bharti

Romance

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Shyam Kunvar Bharti

Romance

गुल खिला ही नहीं

गुल खिला ही नहीं

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वफा क्या चीज है सबक मिला ही नहीं

जख़्मी जिगर कहाँ हुआ बदन नीला ही नहीं

मेरे इश्क को दिल्लगी समझता है वो

रहा राजी सदा हुआ दिल उसका ढीला ही नहीं

दिल तोड़कर मेरा कहाँ हुआ मुंह पीला ही नहीं

बदल लो लाख आशिक कपड़ों की तरह

कहोगे एक दिन कोई मुझ सा मिला ही नहीं

इश्के राह में भटक गुम हो जाओगे तुम

जाओगे जहां कहोगे मुझे मिला सिला ही नहीं

इधर या उधर रहोगे कहाँ पहले तय कर लो

हार कर सोचोगे इशके गुल खिला ही नहीं

दिल कोई फुटबाल नहीं पैरो न उछालिए

करके घायल कह दिया कोई किला ही नहीं



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