गुजरता वर्ष
गुजरता वर्ष
सुनो! ये साल भी गुजर रहा है पिछले कई सालों की तरह
दिल से चाहा था तुम आ जाओ सावन की तरह
और संग ले जाओ अपने मौसम की तरह
क्यों आखिर क्यों यह साल भी सब सालों की तरह बीतता जा रहा है
हाथ से फिसलती हो रेत उस तरह फिसल रहा है
सच मानो तो अब झूठ न कहा जाएगा
और सच यह है कि तुम बिन अब हमसे रहा न जाएगा
बहुत कुछ सहा है और अब कुछ न सहा जाएगा
तुम वापस आ जाओ
क्योंकि, नए साल में तुम बिन प्रवेश हमसे न हो पाएगा
