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Dr. Shikha Maheshwari

Abstract

5.0  

Dr. Shikha Maheshwari

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एक चाह बदलाव की

एक चाह बदलाव की

2 mins
320


किसी ने कहा तुम बदल गई हो

मैंने सोचा बदल तो हर कोई जाता है

क्या बदल जाने का ताना हर किसी को दिया जाता होगा

मन से आवाज आई शायद हाँ

न बदलो तो दिक्कत

अरे इतना पढ़ लिख कर भी वही गँवार

बदल जाओ तो दिक्कत

अरे इतना क्यों पढ़ी की पूरी ही बदल गई

इस बदलाव ने बहुत कुछ बदल दिया

मेरा मन मेरा तन मेरी सोच मेरी अंतरआत्मा

मेरा प्यार मेरा व्यवहार मेरा नजरिया

यह बदलाव एक पल में आया या एक सदी में

कहना मुश्किल है

क्योंकि समय बदलते देर नहीं लगती

और समय किसी के लिए ठहरता भी नहीं

बस जब घड़ी का सेल खत्म हुआ था तभी समय थमा था

उस चौबीस घंटे में भी घड़ी ने दो बार सही समय बताया था

बदल गई हवा बदल गया पानी बदल गई वाणी बदल गया संगीत बदल गई संगत बदल गई पंगत बदल गए लोग बदल गया जमाना बदल गए हम और बदल गए कुछ कुछ तुम

बदला तो सब कुछ या यूँ कहूँ कुछ कुछ

फिर बदलने का इल्ज़ाम मुझ पर ही क्यों आया है

मैं बदली क्योंकि मैं बदलना चाहती थी

क्योंकि मैं उस भूत से बाहर निकलना चाहती थी

क्योंकि मैं वर्तमान में जीना चाहती थी

क्योंकि मैं सुनहरा भविष्य चाहती थी

क्योंकि मैं बस तुम्हें चाहती थी

और तुम्हारे लिये खुद को बदलना मुझे अच्छा लगता था

और जब बदल लिया मैंने खुद को

तो तुम बदल गए

तुम्हें तब भी मैंने स्वीकारा

क्योंकि परिवर्तन तो नियम है

परिवर्तन तो गतिशीलता है

लेकिन तुम कुछ इस क़दर बदले कि उसके पश्चात मैं खुद को भी नहीं पहचान पाई

खैर बहुत कुछ बदल गया

पर अभी भी बहुत कुछ बदलना बाकी है

बहुत कुछ अब भी जहन में बाकी है



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