गुफ़्तगू होने लगी है
गुफ़्तगू होने लगी है
तेरी यादों के संग अब तसव्वुर में तुझसे गुफ़्तगू होने लगी है
तेरी गैरमौजूदगी में हवाओं में महसूस तेरी ख़ुशबू होने लगी है
ख़यालो में ऐसी बसी तेरी तस्वीर जैसे तू रू-ब-रू होने लगी है
तुम जो हुए ख़फ़ा फिलहाल कागज़ कलम से बातें होने लगी है
ख्वाबों में तेरे दीद से अब तो अश्कों से पलकें भी भीगने लगी है
रूह छोड़ रही जिस्म आके भरलो आग़ोश में यही आरज़ू बची है।

