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Amitosh Sharma

Abstract Inspirational Others

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Amitosh Sharma

Abstract Inspirational Others

"गुफ़्तगू अपने ग़मों से"

"गुफ़्तगू अपने ग़मों से"

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दिल के पन्नों पर रक्त की स्याही से,

अक्सर दर्द भरी दास्ताँ, 

गुफ़्तगू अपने ग़मों से, 

लिखता रहता हूँ मैं।

कि ख़्वाबों का टूटना ग़म दे गया, 

वक़्त का सितम, 

ज़िन्दगी में अनेको ज़ख़्म दे गया, 

ख़ामोशी और मायूसी का पहरा हुआ,

विरानी और दर्द हर दम दे गया।।

ख़ूबसूरत चेहरों कि सतरंगी अदा, 

को सफ़ेद होते देखा मैंने,

रिश्तों में झूठी हँसी से हां कहने वाली 'हँसी', 

को परखा मैंने,


वो अपने कहने वाले 'अपने',

कुछ जाने कुछ अनजाने चेहरों की हक़ीक़त सामने आई, 

दोस्ती और अपनेपन का मुखौटा बेनक़ाब हो गया, 

हम उनसे वफ़ा की उम्मीद में बैठे रहे, 

और उनका दग़ा क़ामयाब हो गया।।

मैं और मेरी ख़ामोशियाँ अपने ग़मों से गुफ़्तगू करते हैं,

कि रुबरू ये हक़ीक़त बहुत कुछ सीख दे गया,

चेहरों को पहचानने की तरक़ीब दे गया, 

दर्द और दग़ा के साथ कुछ अटूट रिश्ते बने, 

रिश्तों की नाज़ुक डोर नई उम्मीद दे गया।।


दिल के पन्नों पर रक्त की स्याही से,

अक्सर दर्द भरी दास्ताँ, 

गुफ़्तगू अपने ग़मों से, 

लिखता रहता हूँ मैं।

कि वक़्त का सितम,

ज़िन्दगी का ज़ख़्म,

उनसे मिले ग़म, 

से कभी न टूटेंगे हम,

क्योंकि रखते हैं मेरे लिए ज्यादा मायने, 

कुछ अटूट रिश्तों से मिले प्यार वाले मरहम।

दिल के पन्नों पर रक्त की स्याही से,

यूं ही दर्द भरी दास्ताँ, 

गुफ़्तगू अपने ग़मों से, 

लिखता रहूँगा मैं।।


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