गुबार
गुबार
हर रोज छिड़ती है एक नई जंग जिंदगी से
हारते हारते फिर भी जीत जाती हूँ मैं
कितने लगे हैं कब्र खुदवाने में या खुदा
फिर भी मौत से हर बार जीत जाती हूँ मैं
उड़ाते है धूल का गुबार परछाई धुंधली करने
गिर गिरकर फिर से लड़ने उठ जाती हूँ मैं
भरमाया जाता है काली रात के साये सा
काली रात से भी काजल चुरा लेती हूँ मैं
कोशिश पुरजोर हो गई मिटाने की वजूद
घने कोहरे में भी खुद को पहचान लेती हूं मैं
तीर कमान सी चलाते है लोग जुबान बेधड़क 'नालंदा'
दीवारों दर को भी अमन चैन से रखती हूं मैं