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ज्योति किरण

Tragedy

5.0  

ज्योति किरण

Tragedy

ग़रीब

ग़रीब

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अपनी ही ज़िन्दगी, 

पिरोने का अधिकार नहीं

क्या इनको सपने संजोने का, 

अधिकार नहीं? 

धनवान की ठोकर में,

गुज़ारता है ज़िंदगी

क्यूँ, फिर भी ग़रीब को रोने का,

अधिकार नहीं ?


यह मेहनत से मैला ढोते हैं, 

ज़माने का, 

पर अपनी ही किस्मत धोने का,

अधिकार नहीं!

अश्रुओं से तन-मन भीग

जाया करते है मगर

इन्हें अपनी आँखें भिगोने का,

अधिकार नहीं।।


क्यूँ ग़रीब को सपने संजोने का,

अधिकार नहीं..


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