ग़रीब
ग़रीब


अपनी ही ज़िन्दगी,
पिरोने का अधिकार नहीं
क्या इनको सपने संजोने का,
अधिकार नहीं?
धनवान की ठोकर में,
गुज़ारता है ज़िंदगी
क्यूँ, फिर भी ग़रीब को रोने का,
अधिकार नहीं ?
यह मेहनत से मैला ढोते हैं,
ज़माने का,
पर अपनी ही किस्मत धोने का,
अधिकार नहीं!
अश्रुओं से तन-मन भीग
जाया करते है मगर
इन्हें अपनी आँखें भिगोने का,
अधिकार नहीं।।
क्यूँ ग़रीब को सपने संजोने का,
अधिकार नहीं..