STORYMIRROR

Rashmi Sthapak

Classics

4  

Rashmi Sthapak

Classics

गर सलामत रहे

गर सलामत रहे

1 min
292


फिर मिल बैठेंगे

बरामदों में

संग यारों के

चाय की चुस्कियों में 

चर्चे अख़बारों के

चटखारे भी संग होंगे 

नए-नए अचारों के

गर सलामत रहे


फिर मिल बैठेंगे

आबाद होंगी नुक्कड़ें

महकेगी मिट्टी

वाली कुल्हड़ें

बुजुर्गों के नुस्ख़े 

और आशिक़ों के क़िस्से

फिर बनेंगें 

घर-घर के हिस्से 

गर सलामत रहे


फिर मिल बैठेंगे

आएंगे फिर

मेरठ वाले जंवाई

बलैयां लेगी बड़ी ताई

गूंजेगा घर का

<

p>कोना कोना

बच्चों का संग

बिछेगा बिछौना

गर सलामत रहे 


फिर मिल बैठेंगे

अभी रहे जो दूर

सनद रहे ये जरूर 

दिखते जो हैं पास

वो भी कब हैं पास

प्रेम कहाँ है कब

दूरी का मोहताज

रचेंगे नया इतिहास 

गर सलामत रहे


फिर मिल बैठेंगे 

हमजोलियों के संग

लेकर गीतों के छंद

फिर होंगी

खामोश मुलाकातें

आंखों आंखों में बातें  

सुरमई शाम फिर ढलेगी 

किसी के नाम 

गर सलामत रहे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics