ग़ज़ल
ग़ज़ल
काश दिल से वो कुछ कहा होता।
बात मेरी भी कुछ सुना होता।
आज कल दिल उदास फिर कैसे
राह-ए-उल्फत सज़ा दिया होता
दिल-ए-नादान क्या हुआ कहते
दर्द-ए-दिल का दवा किया होता
बात ऐसी कि चुप रहा अबतक
वर्ना हर बात कर लिया होता
मौत का दिन यहां मुकर्रर है
दिल से दिल तो मिला गया होता
वो वहां है जहां से मुझतक वो
आते आते ही गम ज़दा होता
ज़ख्म देने की आरजू दिल की
दर्द सहने का हौसला होता
तेरे होते खुशी क्या ग़म कह दे
तू न होता तो क्या हुआ होता
ऐ 'विशू' भीड़ में अकेला हूॅं
साथ चलता तो रहनुमा होता