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Sudershan kumar sharma

Tragedy

4  

Sudershan kumar sharma

Tragedy

गजल

गजल

1 min
320


निगाहें गर्म हो गई दर्द के पानी से। 

घड़ा गम का टूटा, तो बह गया

पानी।। 


मेरा तो चैन छीन ले गया यारो,। 

दिबारें फांद के दिल की, 

जब बह गया बन के दरिया

पानी।। 


लब भी सूख गये थे तीखी धूप में,

भटक भटक कर जिनकी खातिर, 

ढूंढने पर भी न मिला इक बूंद सा पानी। 


कोई मिल न सका स्रोत ऐसा

कि सहरा को दरिया कर दूं। 

पूछा हरेक राहगिर को भी

न मिल सका एक बूंद भी पानी।। 


जिनकी तलास में भटकता रहा,

बंजरों में दिन रात। 

तमन्नों की प्यास बूझा न सका

ओस का पानी।। 


गरज गरज कर भी न बरसे

प्रीत के बादल, 

चकोर बन के नाचता रहा

बिना पानी। 


जलाया है दीप ऐसा की

नई रोशनी दिखाऐगा सुदर्शन, 

बचाना इसको भी जरूरी

कहीं बुझा ने दे इसे हवा पानी।। 


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