गज़ल
गज़ल


जुड़ती रहे कड़ी से कड़ी हर लम्हा एहसासों का
चलता रहे सिलसिला यूँ ही मुलाकातों का
रूबरू तुम हो न हो, रहे जिक्र तुम्हारी यादों का
चलता रहे सिलसिला यूँ ही मुलाकातों का
ख्वाब लिए इन आँखों में रोज गुजरती रातों का
लौ जैसी जलती बुझती सुलग रही जज्बातों का
कोई गिला नहीं तुमसे "इन्दर", है ऐतबार तुम्हारे वादों का
चलता रहे सिलसिला यूँ ही मुलाकातों का