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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Abstract Romance

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Abstract Romance

गीत....अनुबंध

गीत....अनुबंध

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दिव्य प्रभा के नभ तल में तुम, प्रिय अनुबंध हो ।

मम अनुचर सहचर प्रेम पथी सी, शुचि संबंध हो ।।

    दिव्य प्रभा के नभ-तल में...

दूर गगन में जाकर कह दूॅं, तुम ही प्रेम हो।

भाव व्यथा की पावन अनुपम, कल्पित क्षेम हो ।।

मम जीवन के आधार वही, कर हो स्कंध हो ।

आत्ममिलन जो इस तन से हो, वह मणि बंध हो ।।

    दिव्य प्रभा के नभ-तल में...

उदयाचल से मर्यादित वह, सत्य स्वभाव हो ।

निर्झर बहती प्रेम सुधा से, सरित बहाव हो ।।

समरसता के सौंदर्य सहित, पूज्य प्रबंध हो ।

न्योछावर सब कुछ तुम पर जो, वह सौगंध हो ।।

     दिव्य प्रभा के नभ-तल में...



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