गीत....अनुबंध
गीत....अनुबंध
दिव्य प्रभा के नभ तल में तुम, प्रिय अनुबंध हो ।
मम अनुचर सहचर प्रेम पथी सी, शुचि संबंध हो ।।
दिव्य प्रभा के नभ-तल में...
दूर गगन में जाकर कह दूॅं, तुम ही प्रेम हो।
भाव व्यथा की पावन अनुपम, कल्पित क्षेम हो ।।
मम जीवन के आधार वही, कर हो स्कंध हो ।
आत्ममिलन जो इस तन से हो, वह मणि बंध हो ।।
दिव्य प्रभा के नभ-तल में...
उदयाचल से मर्यादित वह, सत्य स्वभाव हो ।
निर्झर बहती प्रेम सुधा से, सरित बहाव हो ।।
समरसता के सौंदर्य सहित, पूज्य प्रबंध हो ।
न्योछावर सब कुछ तुम पर जो, वह सौगंध हो ।।
दिव्य प्रभा के नभ-तल में...