घटिया लिबास
घटिया लिबास
ये नंगें लोगों की पसंद के, ऊँचे लिबास,
लोगों को रिझाने की कोशिश घटिया बात,
और इनके पंगू घटियां और ओछे से राज़ ।
क्या आवाज़ दबी है कभी इंसानियत की,
क्या मज़हब से बड़ा हुआ है कोई आज,
ये नंगें लोगों की पसंद के, ऊँचे लिबास ।
बदल कर वेशभूषा, घुसे हमारे दिलों में,
लिखकर आये है, अपनी हैवानियत आज,
ये नंगें लोगों की पसंद के, ऊँचे लिबास ।
बना डाला है इन्होने हर गली रोती आवाज़,
देखो झाको मारों तुम सब मिलकर आज,
ये नंगे लोगों की पसंद के, ऊँचे लिबास ।
