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Satyawati Maurya

Abstract

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Satyawati Maurya

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घर का मुखिया

घर का मुखिया

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सिर पर चिलचिलाती धूप

कंधों पर घर की ज़िम्मेदारी

आँखों के झिलमिलाते आँसुओं में

डूबते -उतराते अधूरे सपने

दिल की बेक़ाबू धड़कनें

बच्चों का भूख से पिचका पेट।


पीठ पर बैकपैक में फैली थी

 वह सिमट गई गृहस्थी।

कमर पर सपोर्ट के लिए एक हाथ

दूसरे हाथ में विश्वास से बच्चों को थाम

एक बेटा,पति,पिता चल पड़ा है

ज़िम्मेदारी से जड़ों की तरफ़।


शहर के लिए मज़दूर है वो

न जाने कितने निर्माणों में 

सीमेंट ,रेती के साथ उसका 

गर्म पसीना भी मिश्रण 

में जा मिला होगा।


इमारतों की नींव 

बनी और गर्व से 

खड़ी हो गई

वह पूर्ण हुई तो

आशियाना बना वहाँ 

बस भी गए लोग।


पर परिवार सहित आज 

वह बेघर हो गया।

वह बीमार भी नहीं

खांसी न बुख़ार ही उसे।

घुन के साथ बस 


वह पिस गया है।

जैसा अमूमन होता है

चल पड़ा सब समेट 

कर उस घर के लिए,

जहां से अपनी और

बच्चों के बेहतर

भविष्य की कामना 


से निकला था बेसब्र 

और आतुर हो कर।

अब बस जीते जी सब

सलामत पहुँच जाएँ यही

ईश्वर से मन ही मन

गुहार लगाता चल पड़ा है।


टूट तो चुका है,बहुत

पर बच्चों और पत्नी

को मजबूती और

हिम्मत दिखाता है।

मुखिया है वह 

चल रहा है खरामा खरामा।


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