घी का लड्डू
घी का लड्डू


घी का लड्डू टेढ़ भलो,
लड़के घी के लड्डू होते हैं,
और हम लड़़कियां ?
स्त्री ही बेटियों की तुलना,
में बेटों को देती हैं ऊँचा दर्जा।
हर तरह से स्त्रियां ही तो हैं,
सारे मापदंड का स्त्रोत है,
फिर क्यों बिसुरती है।
अपने अधिकार के हनन से ,
क्यों सहती है?
माँ, बहन, बेटी, बहू
के रुप में पीड़ा ?
स्त्री ही कहती है.....
घी का लड्डू टेढ़ो भलो
फिर क्यों बिसुरती है।
यही नियति स्त्री को
गर्त में ले जाती है।
यदि दिया होता स्त्री ने,
बहन, बेटी, बहू को
सम्मान....।