ग़ज़ल
ग़ज़ल
देख जहाँ का ऐसा मंज़र।
दिल हो बैठा मेरा मुज़्तर।
मायूसी में बैठे दिल से।
मैं बोला तू ऐसे मत डर।
रात अमावस की है तो क्या।
इसे मिटा ही देगा दिनकर।
समय बुरा है बदलेगा यह,
अभी नहीं आएगा महशर।
आँसू के खारे पानी से,
बनता सीप के भीतर गौहर।
दुनिया में मत खोज अभी तू,
जीवन है घर के ही भीतर।
वादा इक दूजे से कर लें,
जहाँ बनाएंगे हम सुंदर।
मानवता का रूप दिखा है,
बच्चों के भीतर ही अक्सर।
दर्द कमल कह दे मुफ़लिस का।
कहलाएगा सुख़न-परवर।