ग़ज़ल
ग़ज़ल
हवाएँ कुछ इस तरह से चल गईं।
अच्छी ख़ासी फ़िज़ाएँ बदल गईं।
जबसे ख़ार अपने हो गए हमदम,
कलियाँ बेवजह हमसे जल गईं।
हुई महसूस प्यास दूर सहारा की,
तो घाटियाँ बर्फ़ की पिघल गईं।
ज़हर इतना पिलाया पौधों को,
जड़ें उनकी ज़मीन में गल गईं।
घर का बंटवारा हुआ जो 'तनहा',
बच्चों की निगाहें फिर बदल गईं।