ग़ज़ल
ग़ज़ल
इश्क़ की दिल से, खूब यारी है,
आँख इसमें, सदा से भारी है।
बात कहते हुए, रुके थे वो,
प्यार की है, लगे बिमारी है।
कौन था वो, चुरा गया दिल को,
कह सखी हाँ, चिढाए सारी हैं।
बेवफाई मैं, कैसे क्या जानूँ,
बस सदा से, वफ़ा हमारी है।
जो पुकारे है, रातभर हमको,
वो सदा भी तो, हाँ तुम्हारी है।
हम चले जा रहे, क़िधर को हैं,
अब पता चलने की, ये बारी है।
मुल्क है ये तेरा, मेरा यारा,
हाथ में फिर ये, क्यों कटारी है।
चल सखी गाँव, नींद के जायें,
रात अब तो हुई, ये भारी है।