ग़ज़ल
ग़ज़ल
आज फिर हरि रूप का यह दिल दिवाना हो गया ।
दिल हमारा रंज ग़म का ज्यों ठिकाना हो गया ।।
जब पड़ी उस पर नज़र बेचैन सब रातें हुईं
खूब था अच्छा भला दिल आशिक़ाना हो गया ।।
इक नजर तुमने निहारा तो खुशी ऐसी मिली
दर्द का था जो खजाना वो पुराना हो गया ।।
मन-गली में याद की कुछ इस तरह कचपच मची
मौन रहना याद करने का बहाना हो गया ।।
हाथ मेरा थाम सपनों के नगर तुम ले चले
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जैसे फ़साना हो गया ।।
थी घटा काली घिरी जिसने डराया रात भर
याद करते ही तुम्हें मौसम सुहाना हो गया ।।
थाम भी लो साँवरे है पाँव में लग्जिश भरी
तुम मिले तो साथ ये सारा ज़माना हो गया ।।
तुम हमारे हो यही दिल में है भरा विश्वास है
ख़्वाब में हो आ गये समझो निभाना हो गया ।।