ग़ज़ल।
ग़ज़ल।
याद मैं तुम्हें दिन रात करता रहा।
तुम्हारे लिए ही नगमे गुनगुनाता रहा।।
तुम्हारी मर्जी ही सदा मुझे भाती रही।
नफरत भी तुम्हारी दिल से लगाता रहा।।
रहम करो न करो यह तुम्हारी खुशी।
तुम नहीं बेरहम अपने को समझाता रहा।।
तुम्हारी दरिया दिली देख मोहब्बत बड़ी।
तुम्हारी याद में ही आंसू बहाता रहा।।
यूं तो नजरें छुपा कर तुम से मिलता रहा।
फिर भी न जाने क्यों यह दिल मचलता रहा।।
याद आ-आ के ये दिल धड़कने लगा।
दर्द हंस-हंस कर मुझ को रुलाता रहा।।
हर वक्त ख्यालों में तुम ही आती रहीं।
सोते-जागते तुम ही को मैं मनाता रहा।।
ये मुलाकातें "नीरज" तेरी यादें बनीं।
हर जन्म में तुम से ही मेरा नाता रहा।।
