ग़ज़ल।
ग़ज़ल।
चुटकियाँ लेने लगे दिल को फँसा लेने के बाद,
गुल खिलाएंगे नया वह आज मां लेने के बाद।
महफिले महबूब में आते ही देखी बेरुखी,
खूब की खातिर मेरी मुझको बुला लेने के बाद।
क्या पता था इस तरह हैं आपकी नैरंगियाँ,
छेंड़ कर ऐसे हंसाते हो रुला लेने के बाद।
इस तरह खामोश हैं गोया नहीं कुछ जानते,
साफ मुनकिर बन गए दिल को चुरा लेने के बाद।
क्या कशिश थी उस नजर में तीर था ,या तेज थी,
पारा पारा दिल किया आंखें मिला लेने के बाद।
मैं संगे दरगाह हूं मुझको को मुजाविर मत उठा,
किस लिए ठुकरा रहा मुझ को हिला लेने के बाद।
इम्तहां का वक्त है कर सब्र "नीरज" बेखबर,
खुद मेहरबां होयंगे वह रंग जमा लेने के बाद।