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Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy

4.5  

Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy

ग़जल : हम हुए ग़मज़दा !

ग़जल : हम हुए ग़मज़दा !

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हम हुए ग़मज़दा दास्ताने सदा,

था तुम्हारा सहारा मुकर सा गया।

तल्ख़ आगोश बे-इन्तेहा थी हर खुशी,

बदनज़र सी लगी, घर उजड़ सा गया।।

हम हुए ...


ये ज़मी आसमां भूला कारवाँ,

बज़्म ए तन्हा बिचारा बिखर सा गया।

आह बन गई ज़िंदगी और बन्दगी ,

चाँद भी देखो जाने क्यों थक गया।।

हम हुए ...


दर्दे दरिया उफनती सिमटे नहीं,

इन नसों में ज़हर सा क्यों भर गया।

हर घड़ी बेमुरव्वत सी तक़दीर है,

पलक भर में सफ़र पूरा हो गया।।

हम हुए ...


कुछ बचा ही नहीं इन ख्यालात में,

अदना यह इंसान है अब डर गया।

क्या बताऊँ समय का ऐसा सबब,

मैं सुनामी की तरह चलता हुआ।।

हम हुए ....


याद कर भूली सी ज़िंदगी भूल कर,

आईने सर्द जागीर सा कर गया।

यह तवारीख कब तक लिखी जायेगी,

जश्ने दिल को उलेमा कहर सा गया।।

हम हुए ..


बेरहम भर रसद ले के पैग़ाम में,

फिर मिलेंगे कहाँ बाअसर सा गया।

बरहमने ज़ख्म की अब दवा भी नहीं,

नुस्ख़ा लुकमान का बेअसर गया।।

हम हुए ....


ओह हालत बाग़ी कहर सी सदा,

चीर कर तेग आलम जिगर सा गया।

लम्हे,किस्मत,इबादत,इनायत खुदा ,

रश्के तूफां में है सब बिगड़ सा गया।।

हम हुए ....


इन निगाहों में कोई झलक ही नहीं,

इस क़दर बेखबर कर बदर सा गया।

इस क़फस से हिरामन है उड़ गया ,

चीखता मैं रहा ..वह लहर सा गया।।

हम हुए ....



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