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ANIRUDH PRAKASH

Abstract

4.5  

ANIRUDH PRAKASH

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Ghazal No. 37 (दिल)

Ghazal No. 37 (दिल)

1 min
454


अक्ल जिसे कोसे है खोजे है उसे दिल.  

कभी तो आँखों से बच के आ के मुझे मिल


उसे देखे जो ना धड़के तो काहे को ये दिल 

दिल उसका ना धड़के तो किस काम का ये दिल


जो दिल में रहे पर रहे ना दिल का 

फिर उससे दिल लगा के क्यूँ जले ये दिल


दिल टूटा उसका और तड़पा ये दिल 

कमबख़्त अपना है या किराये का ये दिल


दिल-ए-यार से जो लगे एक बार ये दिल 

फिर किसी और काम में लगे ना ये दिल 


दिल उसका ना पसीजा जब टूटा ये दिल 

दिल रोये उसका तो मुँह को आये ये दिल


दिल उसका पत्थर का और मोम का ये दिल 

फिर उसका दिल पिघले कैसे जब जले ये दिल 


दिल से उसके उतरा कब का ये दिल 

दिल ही दिल में उसका अब भी ये दिल 


दिल्लगी को उसकी उल्फत समझ बैठा ये दिल

नादाँ था दर्द को दवा समझ बैठा ये दिल


वहाँ आबाद उसका दिल यहाँ तन्हा ये दिल 

कितना समझाया था मगर कहाँ माना था ये दिल


दिलनशीं तेरी सूरत ऊपर से गालों पे ये तिल 

'प्रकाश' कैसे संभलेगा अब संभाले से भी ये दिल


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