Ghazal No. 28 मेरे रहते मेरा कहा उसने कभी सुना ही नहीं
Ghazal No. 28 मेरे रहते मेरा कहा उसने कभी सुना ही नहीं
डूबा था जो मैं ख़ुशी के दरिया में तेरे आने के बाद
उभरा जा के गम के समंदर में तेरे जाने के बाद
इश्क़ में उल्टी होती हैं सब तदबीरें
होश आता है इसमें होश उड़ जाने के बाद
ना जाने कितने हाथों से गिरे जाम
एक मेरे तेरी महफ़िल में जाम उठाने के बाद
याद आयी उसे मेरी अज़ाब-ए-हिज़्र में
मेरी याद-दाश्त जाने की बाद
मेरे रहते मेरा कहा उसने कभी सुना ही नहीं
अब लिख रहा है दास्ताँ मेरी मेरे जाने के बाद
वो संग-ए-दिल पिघला मेरे दिल के पत्थर हो जाने के बाद
बहार आयी गुलशन में उसके सहरा हो जाने के बाद
अपने तिफ्ली के दोस्तों की बस इसी अदा पर मरता हूँ मैं
लगता है कभी जुदा हुए ही नहीं मिलें चाहे एक ज़माने के बाद
मेरे तवज्जोह की जो है तमन्ना तो रहो मुसलस
ल मेरी नज़र के रु-बा-रु
तस्वीर शख़्स की जेहन में धुँधली हो जाती है अक्सर उसके जाने के बाद
सिलसिला चश्म-ए-गिर्या का इश्क़ में कभी टूटा ही नहीं
बहा लहू आँखों से अश्क़ों के थम जाने के बाद
वो यूँ देखता है चिलमन से अपना जलवा बिखेरने के बाद
जैसे चाँद झाँकता हो बादलों से उनमें छुप जाने के बाद
उठा धुआँ घर से उसके
अपने घर में उसके खत जलाने के बाद
ज़माने भर की बद-दुआएँ दुआओं में बदल गयीं
बस एक मेरा नाम तेरी दुआओं में आने के बाद
फाँकेंगे ख़ाक मेरे कब्र की परेशाँ हो के एक दिन
लौटे हैं जो आज मुतमइन हो के मुझे दफ़नाने के बाद
यूँ ही जो मुस्कराता रहेगा अज़िय्यतों में 'प्रकाश'
ग़म-ज़दा हो जाएँगे तेरे ग़म तुझे सताने के बाद।।