गाँव
गाँव
हर बार यादें ले आता है,
मेरा गांव मेरे मन को
शहर बना देता है.
मैं जब भी याद करूं।
बरगद और पीपल
मेरा गाँव घनी छाँह
बन जाता है
कुंए की मुंडेर पर।
अब कहां पनिहारिनें,
पर प्यासा ये पथिक
बार - बार वहीं
ठहर जाता है।
खंडहर कच्ची खपरैलों से
झांकते हैं अतीत के गीत,
मेरा गांव फिर मेरी उंगली थाम
मुझे बचपन की गलियों में
ले जाता है।
मंदिर और शिवालों
की सीढ़ियों पर
ठिठक के रह जाते हैं कदम
यूं लगता है ज्यों।
साथी कोई अभी
यहीं से बिछुड़ा है
अभी देगा कोई आवाज
और सूने आंगन।
फिर चहक उठेंगे
जाएंगे हम कहीं भी
पर मेरे गांव-
लौट कर हर बार
हम तेरे पास ही आएगें।
अभी ले जा रहे हैं
ताजगी भरी सांसें
अपने बुजुर्गों की
दहलीज से,
पर पहचान मेरे गांव
तुझसे है हमारी
ये कभी न भूल पाएंगे
मेरे गांव।
तेरी मिट्टी की महक
हम अपनी जेबों
में भरकर ले जाएंगे
और खोलेंगे बार बार
उन झरोखों को
जिनसे होकर
हम तेरे आगोश में चले आएगें।