गांव
गांव
गांव ने सादगी दी
मुझे शहर की चकाचौंध भा रही थी।
गांव ने रिश्ते नाते अपनत्व दिया
मुझे अकेलापन भा रहा था।
गांव ने स्वच्छ आबोहवा दी
मुझे शहर की चमकदार सड़कें भा रही थी।
गांव ने छोटा बन के भी सुकून दिया
मुझे बड़े बड़े इमारतें शहर के भा रहे थे।
गांव ने निर्मल जल दिया
मुझे शहर की विलासिता भा रही थी।
गांव ने शांत वातावरण दिया
मैंने शहर की भागम भाग को पसंद किया।
गांव ने बार बार मुझे पुकारा
मैंने उसे हर बार अनसुना कर नकार दिया।
आज वर्षों बाद:
अब शहर में दम घुटने लगा
गांव अब भी बाहें पसारे मेरी राह में खड़ा है।
शहर ने दिया बहुत कुछ
पर लूट भी सारा लिया......!
गांव ने जीवन देकर
मुझे फिर बचा लिया......!
गांव तुम बहुत याद आते हो
गांव:
जब भी आना चाहो
गोद में मेरे आ जाओ ....!!
