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Nitu Maharaj

Classics Fantasy Thriller

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Nitu Maharaj

Classics Fantasy Thriller

गांव से

गांव से

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पहले कभी जब गांव से ,

पीपल की ठंडी छांव से 

नदी की बलखाती धारा 

खेतों में इठलाती थी मौसम

ठंडी हवा के साए थे ,

दिल रोया तब भी था 

जब शहर को हम आए थे।


हम ढूंढते फिरते रह गए 

अपने मन का वो गांव 

धूप कड़क थी सर पे मेरे

मिल पाया नही फिर भी 

पीपल की वो ठंडी सी छांव 


वो रंगीन सा मौसम कहां गया

वो नदियों का पानी कहां गया 

खेतों में मन बहलाते थे ,

नदियों से मोती चुराते थे,

उस उपवन को फिर से देखूं 

तरस रहे है ये नैन

शहर की बेरहम जिंदगी 

करने लगी मुझको बेचैन।


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