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SARVESH KUMAR MARUT

Abstract Tragedy

4.7  

SARVESH KUMAR MARUT

Abstract Tragedy

फ़टी झोली और फ़टे हाल हैं

फ़टी झोली और फ़टे हाल हैं

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माँग लिया हमने कुछ उनसे, 

झट उन्होंने मुख अपना मोड़ा।

तोड़ लिए अपने दरवाज़े, 

टक-टकी लगाए मैंने देखा ऐसे।

कुछ मिल जाए-कुछ मिल जाए, 

यह उम्मीद लगाए मैं बैठा।


कुछ देखकर फिर मैंने, 

अपने कदम बढ़ा लिए।

फिर मैंने बस इतना सोचा, 

यह जीवन का कटु है सच।

कोई नहीं दे सकता हमको, 

खाने और बनाने को।

और कुछ मुझे दे देते, 

हमारा शरीर बचाने को।


पर हमें मिल सका न कुछ, 

यह सोच मन बड़ा हताश है।

फिर यही सोच लेता हूँ मन में, 

यह पिछले जन्मों का अहसास है।

यही समझ कर रुक जाता हूँ, 

जीवन अपना कंगाल है।

भूख लगी और नहीं लगी है, 

तन कहता और मन कहता है।

कुछ तो हमको मिल जाए, 

मिल जाए तो अभिनन्दन उसका।

और नहीं मिला तो फिर क्या ?, 


हम तो वही फटी झोली और फटे हाल हैं।

पर मैं इस हाल को लेकर, 

किस-किस के घर जाऊँ?

हम तो फटी झोली और फटे हाल हैं, 

पर उनके सबके फटे हृदय हैं।

और हम से भी ज़्यादा, 

उन बेचारों का बुरा हाल है।

पर हम फटी झोली और फटे हाल हैं, 

इससे भी ज़्यादा हमारा क्या बुरा हाल है ? 



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