Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract

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Sudhirkumarpannalal Pratibha

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हमसफर

हमसफर

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तुम

जीवन

भर

हिचकोले

खाते

रहे

और

तुम्हारे

साथ

मैं

भी

इस

सफर

में

तुम्हारा

हमसफर

बनकर

कहीं

भी

रास्ते

अच्छे

नहीं

मिले

कभी

भी

सुकून

नहीं

मिला

खुशी

और

आनंद

रूठी

रही

आजीवन

आज

जीवन

के

अंतिम

पड़ाव

पर

भी

गढ्ढे

है

खाईयां

है।



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