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Kanchan Pandey

Abstract

4.5  

Kanchan Pandey

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दोहा

दोहा

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१.अपना साथी खुद बनें, देखो ना मुख ओर।

कोय नही है आपनों,मन में सबके चोर।।


२. नर मद मन ना राखिए, यह होत विष समान।

    आप रहे इसके नशे, आप बचे ना ज्ञान।।


३.दान भाव उत्तम कहे, इसको नर तू जान।

औरन खातिर जो जिए,  वह सच्चा इन्सान।।



४.अपने खातिर सब जिए, औरों का दुख जान।

जो दुखियों का दुख पिए, है वह देव समान।।


५.वाणी ऐसी राखिए,जो हो सुधा समान।

बिन कोई उपहार के, जीवन हो आसान।।


६.वाणी ऐसा तीर है, घातक इसकी मार।

 जन तन मन घायल करे, मन जाए तब हार।।

कंचन पाण्डेय


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