मां का आलिंगन
मां का आलिंगन
मां की कहानी मैं क़लम से बयां नहीं कर सकता
जिसने मुझे रचा
मैं उसकी रचना कर नहीं सकता
मेरा पूरा बचपन अम्मी की गोद में है बीता
मैं आज भी उसी के लिए हूं जीता
जब भी में लड़खड़ाया हूं
उसी ने संभाला है
ग़म हो या ख़ुशी हर वक्त मुस्कुराना सिखाया है
जब भी राह भटका हूं
उसने अंगुली पकड़कर चलाया है
जब भी गर्दिश में फंसा हूं
मां ने मांझी बनकर निकाला है
जब अब्बू का हाथ सिर से ओझल हुआ
तो मैंने मां के आंचल में ही जीना सीखा है
दोस्तों से झगड़ने के बाद
मां ही ढाल बनती थी
लोगों ने देवताओं को पूजा है
मेरे लिए मां के अलावा ईश्वर न कोई दूजा है
मेरी पहली कमाई मां को कितनी भायी होगी
यह उसकी नम आंखों ने बतलाई होगी
जब मां ने आखिरी बार पुकारा
तब भी उनके मुंह से निकला दुलारा
वो शाम भी कितनी कुलक्षिणी होगी
जब एक मां बेटे से बिछुड़ी होगी
जब मेरी मां मुझसे रूखसत हुई होगी
शायद यह प्रकृति भी रोई होगी ।
माना मेरे मां बाप तो मेरे पास है
शायद आज भी किसी अपने का घर उदास है
माना मां की तारीफ में शब्द कम थे
लेकिन अभागे बेटे के जज़्बात बहुत थे।