फ़िक्र बेफ़िक्र
फ़िक्र बेफ़िक्र
फ़िक्र बेफ़िक्र उसकी, यादों में फ़िज़ूल तन्हा,
ख़्वाब दुनिया में उसे, दिखा दें जहाँ तन्हा।
मंज़र मंज़िलें उसकी, बेफ़िज़ूल जहाँ मंज़ूर,
बिखेरे अल्फाज़ वो, वहाँ अब हुज़ूर तन्हा।
ख़्वाहिशें बेहिसाब, बेवफ़ाओं की गुनहगार,
मुक़म्मल थी जो वहीं, बेसबर आलम तन्हा।
निगाहें कर रहीं गुफ़्तगू, कि फिर मुक़म्मल,
लफ़्ज़-ए-दरमियाँ उसे, परहेज़ कहा तन्हा।
बेख़बर बेसब्र थी वो, इज़्तिराब उसे जहाँ,
अल्फाज़ क्या बिखेरे, हार्दिक वो भी तन्हा।