एलियन
एलियन
एक दिन में पहुंची किसी नई दुनिया में जहां पेड़ हैं हरे - भरे
पहाड़ हैं बडे़ - बडे़
पानी है निर्मल -निर्मल
तारे हैं झिलमिल -झिलमिल
सूरज है चमचम - चमचम
हवा है थम थम - थम थम
चांद है घटता -बढ़ता
आसमां विस्तृत फैला
बस हमारे जैसे इंसान नहीं है
जो हैं पता नहीं कौन हैं
मुझे देख न जाने क्यों मौन हैं
मुझे देख रहे हैं घूर - घूर
अपनी एक आंख से
हां ! बस एक आंख
वो भी माथे के बीचोबीच है
उनका रंग हमारे जैसा नहीं है
हरा, नीला, पीला सा है
वे बातें कर रहे हैं
न जाने कौन सी भाषा में
वे आ रहे हैं मेरे करीब
आते जा रहे हैं
मैं हैरान हूं
परेशान हूं
मैं डर रही हूं
मैं सोच रही हूं
कहीं मैं दूसरे ग्रह पर तो नहीं
कहीं ये सब एलियन तो नहीं
मैं और डर रही हूं
आ रही हैं मेरे कानों में बार - बार
बड़ी तेज आवाज
जैसे बज रहा हो अलार्म
मैं घबरा के उठ बैठती हूं
फिर क्या देखती हूं
मैं हूं अपने कमरे में अपने घर
नहीं है वहां कोई भी एलियन
मैं हंस पड़ती हूं
जोर से माथा पीटती कह उठती हूं
धत्त ये तो सपना था... ...
