एकाकी जीवन
एकाकी जीवन
एकाकी जीवन बिन परिवार के ,
यानी की मछली है बिन पानी के।
बूझे-बूझे से यादों में खोए रहना हर पल,
सोते जागते रोना हर पल।
अच्छी यादों को सहेजना हर पल,
बस भूत में ही रहने को चाहना हर पल।
न निद्रा लेना न जागना,
फिर कब मिलना है बस
यही सोचना हर पल।
अकेलेपन में मन का भटकना हर पल,
अंतर्मुखी बन बुरे खयालों के
शिकंजे में जकड़ना हर पल।
ऊँचाईयों को छूने की तमन्ना,
जैसे सारे ही मक़सद भुला देना।
आत्म सम्मान की बलि चढ़ाना हर पल।
समझौतों से भरी जिंदगी का हो जाना,
मन का खुश होना तो
जैसे सदियों की बात होना।
नकारात्मता को मित्र बना लेना,
मन में भय का ही वास करा देना।
खुशियों पर ताले लग जाना
जिसकी चाबी हमारे
अपनों के पास ही रख आना।
फिर दस्तक देने से क्या लाभ
इसीलिए कहती हूँ
रहो अपनों के साथ।
जमा हुई संस्कारों की पूँजी के साथ,
खुद को संस्कारों से भरो,
अपनों को अपना समझो
और गले लगाओ।
ना कि परायों को
सर पर बैठाओ।
फिर ना तो एकाकी जीवन होगा,
न ही कोई बिन परिवार के होगा।।