एक शक़्ल पे...
एक शक़्ल पे...


एक शक्ल पे ग़ज़लें हज़ार
प्यार हुआ है पहली बार
आँखें उसकी कर रही मदहोश
कोई संभालो मुझको यार
लब़ उसके बना रहे शराबी
उनके लम्स* को हूँ बेक़रार
* लम्स - स्पर्श
पायल उसकी छन - छन करती
कर रही दिल ज़ार - ज़ार
ए से आई है वो पास
दिल कर गई तार - तार
गाल उसके जैसे मख़मल
सब्र मेरा तोड़ते हर बार
मुस्कान उसकी उड़ाती होश
कैसे सहूँ मैं उसके वार
औरों से बातों में मश्गूल
कोई बता दो कहाँ चरागार*
*चरागार - Doctor
चाँदनी भी अब लगती फ़ीकी
उसकी बिंदिया का एसा वार
उसकी ही करता हूँ इबादत
ज़र्रे - ज़र्रे में उसका दीदार।