एक शक़्ल पे...
एक शक़्ल पे...
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
एक शक्ल पे ग़ज़लें हज़ार
प्यार हुआ है पहली बार
आँखें उसकी कर रही मदहोश
कोई संभालो मुझको यार
लब़ उसके बना रहे शराबी
उनके लम्स* को हूँ बेक़रार
* लम्स - स्पर्श
पायल उसकी छन - छन करती
कर रही दिल ज़ार - ज़ार
ए से आई है वो पास
दिल कर गई तार - तार
गाल उसके जैसे मख़मल
सब्र मेरा तोड़ते हर बार
मुस्कान उसकी उड़ाती होश
कैसे सहूँ मैं उसके वार
औरों से बातों में मश्गूल
कोई बता दो कहाँ चरागार*
*चरागार - Doctor
चाँदनी भी अब लगती फ़ीकी
उसकी बिंदिया का एसा वार
उसकी ही करता हूँ इबादत
ज़र्रे - ज़र्रे में उसका दीदार।