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Beena Ajay Mishra

Abstract Classics

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Beena Ajay Mishra

Abstract Classics

एक नया निर्माण दो !

एक नया निर्माण दो !

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सपनों में आकर हे प्रिय !

अंकपाश में लेते हो

नींद मधुर हो जाती है

नैनों की नैया खेते हो


लाज बनी है मधुयामिनी

दो आँखें जैसी सुहाग-दिन

आओ स्पर्श करो मन को

मैं बैठी हूँ क्षण-क्षण को गिन


शुष्क देह की पटिका पर

चित्रकार! अब कुछ आँको

मैं नैन मूँद ये लेती हूँ

लो रंग दो मेरी गरिमा को

हे अर्धनारीश्वर ! परम पूज्य !


पूर्ण करो नारीत्व को

मेरी क्षमता है बंजर भूमि

रोपो मुझमे तुम ममत्व को

मुक्तिपथ यही मेरा है


अविलंब मुझे निर्वाण दो

रम जाओ पल भर को मुझ में

और एक नया निर्माण दो।


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