एक मुसाफिर
एक मुसाफिर
मैं एक मुसाफिर, मुझे जीने कि सीख ना दो
पल दो पल ज़िन्दगी है ता-उम्र
ठहर जाने की उम्मीद ना दो।
गुज़रते लम्हों कि तरह एक दिन मुझे भी चले जाना है
इन बे बुनियाद खुशियों की चाहत से
मेरे इरादों को तकलीफ ना दो।
राह में हमसफर कि आस से क्या हासिल होगा मुझे
फरेबों की हकीकत से खूब वाकिफ हूं मैं
कोई कितना हमदर्द हे ज़माने मे बड़े खरीब से जाना है मैंने।
रास्ते मुश्किल हैं मगर मेरा चलते जाना भी ज़रूरी है
लेकिन ना यूं दुहाइयां देकर वफाओं कि
अपनी मेरे सफर को कोई ठहराओ ना दो।