एक कविता माँ के नाम
एक कविता माँ के नाम
जिसने मुझे खुद लिखना पढ़ना सिखाया
मैं अब उसके लिए क्या लिखूँ ,
जिसने मेरे जिंदगी के एक एक
दिन को यादगार बना दिया..
अब उसके लिए मैं..
साल के एक दिन में क्या लिखूँ।
एक दिन में सब कुछ कैसे लिखूँ माँ ?
मैं इस रंगीन दुनिया देखुँ उससे
नौ महीने पहले तुझसे मेरा नाता है,
अगर कोई कहता है कि माँ की प्यार
को एक कविता में लिख देगा
तो वह मूर्ख खुद विशाल समुद्र
को पानी देना चाहता है।
अगर एक शब्द हूँ मैं तो तू पूरी भाषा है,
एक वाक्य में बोलूँ तो यही तेरी परिभाषा है,
हर जन्म में तेरे ही गोदी का रहेगा मुझे इंतेज़ार
मेरे लिए सबसे बढ़कर है तू और तेरा प्यार।
मैं एक दिन नहीं रोज़
मातृ दिवस मनाना चाहता हूँ,
हर जन्म में बस तेरे ही
गोद में खेलना चाहता हूँ,
तू ही मेरी सब कुछ है,
तुझे ही अपना पहला ईस्वर मानता,
इस बात पर अगर खुदा भी रूठ जाए
तो मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
वैसे हमेशा कुछ न कुछ तो लिखता रहा
पर तेरे लिए आज लिखने को
अल्फ़ाज़ों का आज अकाल पड़ा गया ,
शुक्रिया अदा करता हूँ उस खुदा का
जिसने माँ के रूप में भेजा तुझे...
कुछ तो ज्यादा लिख नहीं सका इसलिए
मेरा पूरा ज़िंदगी ही तेरे नाम कर दिया।