एक किसान की व्यथा
एक किसान की व्यथा
पूरे जगत का पेट पालकर पालनहार बनता है;
नाम उसका किसान कहलाता है।
तपती धूप में हल चलाने से कभी नहीं घबराता है;
लेकिन जीवनभर लगन चुकाता रह जाता है।
आंधी तूफानों से भी जूझ कर फसल बोता है;
पर फिर भी फसलों का सही दाम नहीं मिल पाता है।
अपने उज्जवल भविष्य के लिए नई सरकार का इंतजार किया करता है;
लेकिन खुद ही सरकारी सियासतों के चंगुल में फस कर रह जाता है।
छोटे से मकान में रहने में कभी नहीं हिचकिचाता है;
किंतु अपनी पूरी जिंदगी किश्ते भरने में ही व्यतीत कर देता है।
यूं तो कृषि उत्पादों को विदेश भेजा जाता है व्यवसाय के लिए;
लेकिन आज का किसान कल आज और आने वाले समय में किसान बनकर ही रह जाता है।
यूँ तो अपनी पूरी बचत फसलें उगा देने में लगा देता है;
फिर भी हर साल किसान आत्महत्या की राह पर चल बैठते हैं।
पूरे जगत की भूख मिटाते मिटाते खुद ही भूखा रह जाता है;
क्या वाकई में किसान का सम्मान सिर्फ कागज़ के टुकड़े पे रह जाता है ?
मत कुचलो किसानों के सपनों को बेरहमी से इतना;
क्या पता इतिहास के पन्ने में रह जाए केवल अस्तित्व उसका।