सोचा न था....
सोचा न था....


बचपन में बिंदास बक-बक करनेवाली लड़की,
आज नाप-तोल के बोलने लगेगी सोचा न था।
एक कपड़े चुनने में हजारों नखरें किया करती थी जो,
आज कोई भी वस्तु में आसानी से खुश हो जाएगी
सोचा न था।
एक समय पर पूरे-पूरे दिन खेल खेलने वाली लड़की,
आज चौबीस सौ घंटे अपने काम में व्यस्त हो जाएगी
सोचा न था।
रिश्तेदारों से हंसी मज़ाक करती थी जो कल तक,
आज केवल हाय-हेलो का रिश्ता रह जाएगा सोचा न था।
अपना काम हमेशा दूसरों से करवाने वाली लड़की,
आज दूसरों का काम भी आसानी से कर जाएगी
सोचा न था।
बात-बात पर मैं
-मैं करने वाली लड़की,
आज हर वाक्य में हम जोड़ने लगेगी सोचा न था।
मिल-जुल के व्यवहार से कोसों दूर रहने वाली लड़की,
आज अलग-अलग लोगों के साथ टीम में जुड़ना सीख
जाएगी, सोचा ना था।
धैर्य-शांति छोड़ चौबीस सौ घंटे गुस्से में रहती थी जो कल तक,
आज समझदारी से फैसले लेने लगेगी सोचा न था।
अपनी खुशी दूसरों में ढूंढा करती थी कल तक,
आज अपने आप को देख कर ही खुश रहने लगी है, सोचा ना था।
अपनी भावनाओं को प्रकट करने में डरती थी जो लड़की,
आज अपने व्यक्तित्व को इस काव्य के द्वारा प्रकट करने
लगेगी सोचा ना था।