केवल सोच का ही फर्क है
केवल सोच का ही फर्क है
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जमाना बदला, नीति बदली, बदला यह पूरा जग,
बदलाव लाने के चक्कर में सोच के चक्रव्यूह में फस गया मनुष्य जग।
वो जो एक जमाने में पत्थर को भी भगवान माना करते थे;
और आज प्रभु की मूरत को ही नीलाम किए जा रहे हैं।
वो लोग जो रिश्ते की आड़ में दिल खोल कर दिया करते थे;
और आज हैसियत होने पर भी पांव पीछे किए जा रहे हैं।
जो लोग शादी को परमात्मा का आशीर्वाद मानकर सच्चे दिल से निभाते थे;
और आज अपनी प्रशंसा के लिए पैसों का डंका बचाए जा रहे हैं।
स्वतंत्रता पर भाषण देते थे जो लोग;
आज औरतों की आज़ादी पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
देश के विकास के लिए तकनीक की खोज करने वाले लोग;
आज गरीब वर्गों की जरूरतों को भी नजरअंदाज किए जा रहे हैं।
अपने आपको नई टेक्नोलॉजी से अपडेट करने वाले लोग;
आज बहू बेटी की शिक्षा पर भी पाबंदी लगाई जा रहे हैं।
एक तरफ अंधविश्वास पर हसने वाले लोग;
दूसरे ही तरफ ज्योतिष के पीछे चक्कर काटे जा रहे हैं।
एक तरफ समाज में जागरूकता का ढोल बजाते लोग;
दूसरी ही तरफ घर की रूढ़िवादी रीतियों को बदलने में निष्फल हुए जा रहे हैं।
बीसवीं सदी हो या चाहे हो 21वी सदी,
अत्याचारों का सिलसिला चलते ही रहना है,
देश में विकास का डंका बजाने के लिए;
सोच का बदलना अमल करवाना है।