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Shweta Sharma

Abstract

3.7  

Shweta Sharma

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एक है औरत

एक है औरत

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एक है औरत, जो अपनो की खुशियों में खुद को भूल जाती है

चुप रहकर वो अपने सारे फर्जो को निभाती है !


उनके भी होते है सपने, मिली इजाजत गर पूरा करने की,

तो आगे बढ़ पाती है, गर नहीं तो सपने अपने पीछे कहीं छोड़ आती है !


खामोश होकर सब कुछ सह ले तो,

दुनिया में टिक पाती है, और अगर

विरोध में बोले, तो दुनिया ही उजड़ जाती है !


मजबूती से अपने परिवार के लिए सब कुछ

त्याग कर जाती है, फिर भी सबकी निगाहों में पागल ही कहलाती है !

वक्त बदला जब औरत आगे बढ़ने लगी,

अपनी खुशियों का ख्याल भी वो रखने लगी !


कंधे से कंधे मिलाकर पुरषों के साथ चलने लगी,

यही बात कुछ लोगों और पुरषों को अखरने लगी !

डरने लगा पुरुष समाज, कहीं आगे ना बढ़ जाए हमसे

यह बात कुछ लोगों को हजम नहीं होने लगी !


गलत को गलत कहने की हिम्मत अब वो लाती है,

तो उसकी पढ़ाई पर भी लोगों की निगाहें उठ जाती है !


सवाल उठाने लगते हैं लोग उनकी पढ़ाई लिखाई पर,

क्यूंकि बर्दाश्त नहीं होता, की औरत भी कुछ बोल पाती है !

चुप रह ले और सब कुछ सह ले, तभी संस्कारी कहलाती है,

गर अगर कुछ बोल दिया, बात संस्कार पर आ जाती है !


संस्कारी वो फिर भी नहीं होती, हमेशा किसी ना किसी

बात पर सुनाई जाती है, तानों की बारिश से वो फिर भी ना बच पाती है !

खुद के सपने पूरे करने आगे वो बढ़ जाती है,

तो उसके रास्तों में बहुत कठिनाई आती है !


कभी बदतमीज या कभी चरित्रहीन ना जाने क्या क्या

कहलाई जाती है, खुद को बढ़ाने के लिए ना जाने क्या क्या सहती जाती है !

इनको तो खतरा हैवानों का भी,

जिनकी गंदी निगाहों से ये रोज सी ही टकराती है !


कुचल देते हैं, इनके तन मन को कुछ लोग,

फिर भी रुक नहीं पाती है, ना जाने फिर भी हिम्मत कहां से इनमें आ जाती है !

हाथ जोड़कर विनती मेरी कुछ लोगों से, औरत भी इंसान है,

देह से परे अगर तुम समझो तो, इनमें भी तुम्हारे जैसी जान है !


उनकी खुशियों को ना कुचलो, इससे ना मिलेगा स्वर्ग तुम्हें,

सम्मान करो इनका तो, धरती पर ही मिलेगा स्वर्ग तुम्हें !

औरतें भी औरतों की दुश्मन ना जाने क्यों बन जाती है,

क्यों एक औरत होकर भी कोई दूसरे के जीवन में आग लगाती है !


अपने आपको ज्यादा ऊंचा मत समझो,

ऊपर वाले से ना ऊंचा कोई,

जब लाठी पड़ती है रब की सारी अकड़ यही रह जाती है !


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