एक है औरत
एक है औरत
एक है औरत, जो अपनो की खुशियों में खुद को भूल जाती है
चुप रहकर वो अपने सारे फर्जो को निभाती है !
उनके भी होते है सपने, मिली इजाजत गर पूरा करने की,
तो आगे बढ़ पाती है, गर नहीं तो सपने अपने पीछे कहीं छोड़ आती है !
खामोश होकर सब कुछ सह ले तो,
दुनिया में टिक पाती है, और अगर
विरोध में बोले, तो दुनिया ही उजड़ जाती है !
मजबूती से अपने परिवार के लिए सब कुछ
त्याग कर जाती है, फिर भी सबकी निगाहों में पागल ही कहलाती है !
वक्त बदला जब औरत आगे बढ़ने लगी,
अपनी खुशियों का ख्याल भी वो रखने लगी !
कंधे से कंधे मिलाकर पुरषों के साथ चलने लगी,
यही बात कुछ लोगों और पुरषों को अखरने लगी !
डरने लगा पुरुष समाज, कहीं आगे ना बढ़ जाए हमसे
यह बात कुछ लोगों को हजम नहीं होने लगी !
गलत को गलत कहने की हिम्मत अब वो लाती है,
तो उसकी पढ़ाई पर भी लोगों की निगाहें उठ जाती है !
सवाल उठाने लगते हैं लोग उनकी पढ़ाई लिखाई पर,
क्यूंकि बर्दाश्त नहीं होता, की औरत भी कुछ बोल पाती है !
चुप रह ले और सब कुछ सह ले, तभी संस्कारी कहलाती है,
गर अगर कुछ बोल दिया, बात संस्कार पर आ जाती है !
संस्कारी वो फिर भी नहीं होती, हमेशा किसी ना किसी
बात पर सुनाई जाती है, तानों की बारिश से वो फिर भी ना बच पाती है !
खुद के सपने पूरे करने आगे वो बढ़ जाती है,
तो उसके रास्तों में बहुत कठिनाई आती है !
कभी बदतमीज या कभी चरित्रहीन ना जाने क्या क्या
कहलाई जाती है, खुद को बढ़ाने के लिए ना जाने क्या क्या सहती जाती है !
इनको तो खतरा हैवानों का भी,
जिनकी गंदी निगाहों से ये रोज सी ही टकराती है !
कुचल देते हैं, इनके तन मन को कुछ लोग,
फिर भी रुक नहीं पाती है, ना जाने फिर भी हिम्मत कहां से इनमें आ जाती है !
हाथ जोड़कर विनती मेरी कुछ लोगों से, औरत भी इंसान है,
देह से परे अगर तुम समझो तो, इनमें भी तुम्हारे जैसी जान है !
उनकी खुशियों को ना कुचलो, इससे ना मिलेगा स्वर्ग तुम्हें,
सम्मान करो इनका तो, धरती पर ही मिलेगा स्वर्ग तुम्हें !
औरतें भी औरतों की दुश्मन ना जाने क्यों बन जाती है,
क्यों एक औरत होकर भी कोई दूसरे के जीवन में आग लगाती है !
अपने आपको ज्यादा ऊंचा मत समझो,
ऊपर वाले से ना ऊंचा कोई,
जब लाठी पड़ती है रब की सारी अकड़ यही रह जाती है !