एक गरीब कुम्हार की दिवाली
एक गरीब कुम्हार की दिवाली
कितनी ये बात सच्ची लगती है,
जो बात शायद सच होना था वह बात
सिर्फ फेसबुक पोस्ट तक ही सीमित रहती है।
लोग बातो ही बातो में रह जाते हैं ,
दिवाली की खुशियां मनाते हैं ,
पर जब बात हो उन गरीबों की,
जब बात हो उन दीये बेचने वालो कि
उनकी आवाज मिट्टी के दीये की तरह
बुझ जाती है।
मैं खरीदारी के लिए आज निकला था,
मेरे आंँखो से अश्क तब छलका था,
रास्ते में दीये बेच रही अम्मा बड़ी मुश्किल से दीये बेच रही थी,
रास्ते में हर जाते व्यक्ति को बडी आशा की दृष्टि से देख रही थी,
आंँख उनकी डबडबाई थी हाथ भी उनके कोमल थे।
हर बार उनकी सांसे आहत होती थी,
हर बार उनकी अरमान टूटती थी,
जब हर व्यक्ति बिना कुछ लिए ही रास्ते से चला जाता था!
बिना कुछ खरीदे बस व्यंग कहे चला जाता था,
जब बात करती दीये खरीद लो बेटा
चल हट बुढ़िया अब मोमबत्ती का दौर है
हर शख्स यह कहता था।
बड़े बड़े शॉपिंग मॉल में तुम बिना मोल भाव के
तुम हजार दो हजार की शॉपिंग करते हो,
जब हम गरीबों से दीये खरीदने की बात आती
तो एक एक रुपए पे किच किच करते हो!
इस चकाचौंध इस धक्का मुक्की में
दिवाली के खुशियों शोर शराब में
ये आवाज दबी रह जाती है।
तुम्हारे इन बम पटाखों के बीच कितने रोते कुम्हारों के चीखे दबी की दबी रह जाती है।
इन कच्ची मिट्टी के दीये बनाने में देखो कैसे हाथ जले से है।
तुम्हारे मोमबत्ती लेने की बात से देखो मेरे आंँख से फिर से अश्क निकले से है।
कितनी सुंदर कलाकारी थी,
दीये के गढ़न भी बड़े सुंदर थे,
मैंने हैप्पी दिवाली बोला था।
दिया बेचती दादी अम्मा ने भी
बड़ी निराशा मन से हैप्पी दिवाली बोल दिया!
बेटा ये लिस्ट तो पढ़ कागज़ पर बेटी ने लिखा क्या - क्या है ?
मैने भी हिम्मत करके उनके कांपते हाथो से कागज़ को थाम लिया था,
मांँ सुन ना देख तेरी बेटी ने क्या - क्या लिखा है?
अम्मा दीये जब बिक जाए
जब थोड़े से पैसे इकठ्ठे हो जाए
घर लौटते वक्त दो किलो आटा लेते आना,
रात के लिए चावल और नमक भी खत्म हो गया माँ उसे भी लेते आना,
पिछली बार तो मिठाई नही लाई इस बार माँ मिठाई खरीदते आना,
इस बार मेरे कपड़े की फिक्र ना करना,
इस बार मांँ आप चिंता ना करना,
वो मैं फटे सूट सिलके काम चला लूंगी,
किसी तरह इस बार भी मै अपनी दिवाली मना लूंगी,
मांँ तू चिंता न करना इस बार थोड़े दिए नही ;
तेरे पूरे दीये बिक जायेंगे
शायद इस बार अम्मा हम सब खुशी से दिवाली सेलिब्रेट कर पायेंगे
मांँ ये लिखा आप रख लो अब
मैने आंँखो से आँशू समेट पचास रुपए का दीये दादी अम्मा से खरीदा था,
हैप्पी दिवाली अम्मा बोल मैं रोते हुए वहाँ से रूसखत हुआ था,
बड़ा दुख है ऐसी बात अब बस फेसबुक पोस्ट पर क्लिक होके रह जाती है।
यह गंभीर विषय और पीड़ा समाज को समझ ना आती है!
