---एक बेटी का दर्द---
---एक बेटी का दर्द---
खुशी थी घर में जब मैं आयी थी
मैंने अपने ख्वाबों की एक छोटी-सी दुनिया बसायी थी
लेकिन एक ही झटके में मेरा ख्वाब टूट जाता है
जिंदगी के हाथों से मेरा साथ छूट जाता है।
वो काली रात अपने साथ मेरी बदनसीबी लायी थी
इसीलिए तो मौत उन दरिंदों के रूप में आयी थी
मेरे कपड़ों के साथ- साथ वो इंसानियत के कपड़े भी बड़ी बेरहमी से फाड़ रहे थे
मै मदद को पुकार रही थी और वो हैवान मेरी दुनिया उजाड़ रहे थे।
किताबों में पढ़ा था दुनिया में इंसानियत बसती है
लेकिन अब जाना है यहाँ बस हैवानियत बसती है
क्या हुआ है समाज को जो आज भी मौन है
इस बेटी को आखिर न्याय देने वाला कौन है।