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एक बात है ...

एक बात है ...

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एक बात है मेरे ज़ेहन में

जो कि इस तरह घर कर गयी

मानो मेरी ज़मीं मुझसे ही बेदखल कर गयी

वो बात अंधेरों के संग आशनाई निभाती है

वो बात उजालों से मुझको दूर ले जाती है

वो बात इतनी गहरी तो नहीं, पर मुझको

जाने किन किन गहराइयों में ले जाती है

वो बात है, वो बात है

मुझे ताउम्र तुमसे दूर रहना है ...

मुझे ताउम्र तुमसे दूर रहना है ...

 

उसके शब्दों में चुभन है

उसके लहज़े में ही

सूरज को भी जलाने की जलन है

पर न जाने क्यों बदन पड़ता मेरा ठंडा

उस बात में न जाने कैसी अगन है

वो बात है, वो बात है

मुझे ताउम्र तुमसे दूर रहना है ...

मुझे ताउम्र तुमसे दूर रहना है ...

 

वो रास्तों की बात है

जिसमें चलने की मुझको इज़ाज़त नहीं

वो आंसुओं की बात है

जिन्हें बहने की भी इज़ाज़त नहीं

वो बात कुछ शब्दों की ही तो लड़ी है

वो बात अधूरे सपने बनकर मेरे आगे खड़ी है

वो बात है, वो बात है

मुझे ताउम्र तुमसे दूर रहना है ...

मुझे ताउम्र तुमसे दूर रहना है ...

 

वो बात ऐसी की रोशन आँखों में अँधेरा कर दे

महकती हवाओं को भी ज़हरीला कर दे

पन्ने पर उतरे तो पन्ना भी जलने लगे

कोई सुन ले अगर सुनने वाला भी मरने लगे

वो बात है, वो बात है

मुझे ताउम्र तुमसे दूर रहना है ...

मुझे ताउम्र तुमसे दूर रहना है ...

 

अदावत बढ़ाती है ज़माने से

अब याद आने से भी डराती है

वस्ल की चाहतें थे रखते

बस हिज़्र की ग़ज़लें सुनाती है

जिस्म बेजान करती झिलमिलाते सपने दिखाकर

मुझको आवारा बनाती है

मुहब्बत से डरा रखा है मुझे जाने कहाँ तक

फिर भी बस मुहब्बत ही बढ़ाती है

वो बात है, वो बात है

मुझे ताउम्र तुमसे दूर रहना है ...

मुझे ताउम्र तुमसे दूर रहना है ...


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