एक बाला
एक बाला
पतली कमर पर पतला धागा
मुंह से कुछ बोल वो बाला
आईने में ही देखे क्यों अपना चेहरा
उसे भी जरा देखो क्यों बेबस हो बाला।
नखरा तेरा कि मुखड़े से मेल नहीं खा रहा
किया है किसी से वादा जो निभाया नहीं जा रहा
अजनबी की तरह बन गऐ हो क्यों खुद से
खुद ही में खोके क्यों बैचेन हो बाला।
क्या बलाऐं ली की गलती हो गई
आँखें चुरा ली की चोरी हो गई
कौन है कौन है कि ख्याल किसका है
ख्यालों का भ्रम क्यों पाला वो बाला।
बता तो जरा बाला पहना क्यों यह पतला धागा
मन चंचल होता ही है बहक जाऐ ना कोई लाला
हया छोड़ के क्यों इतरा रही हो बाला
कि जब एक दिन पंछी की तरह उड़ ही जाना।
नया नया सवेरा हर रोज बाला
बिता कल तो एक बादल काला
बरसा तुम पर तो शोक ना मना
मन के खेत मे अपने बीज तो बोना।
पल पल हर पल इस तरह बदलते
मन मन्दिर के पट जिस तरह खुलते
आवेश में ना आना वो बाला
कण-कण रेत से भी देखो भवन बड़ा बना।
बहके कौन ? कि यहाँ नजारे बहके
पलको के सपनो में जो चेहरे चमके
किस चेहरे पें किसका मन महका
ना हो उस चेहरे पर किसी औऱ का पहरा।
कोमल तन है पर मन नहीं क्या कोमल,
किसी को भुला के अब क्यों याद करे हो
मन की मुस्कान को चिराग तले रख के
कोमल मन में मैल क्यों जमा करे वो माला।
मन फूलो सा महके मुरझाये
कोई हाथ से भले ही मसल जाऐ
पर देखो उन हाथो पे भी खुश्बू छाये
कर भला तो बाला हर बला टल जाऐ।
