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एक आशिक की कलम से

एक आशिक की कलम से

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एक आशिक के कलम से

निकली है, ये बात

दूर तलक जाएगी

ये अँधेरी रात


आशिक हूँ

रग रग में बहता इश्क है

कोई पागल, कोई सरफिरा

कोई मुझे कहता

" ये बेफिक्र है ",


सच ही तो है

बेफिक्र हूँ

बस प्यार से नाता है मेरा,

जहॉं वो दिख जाए

बस वहीं आशियाना है मेरा


रोज़ कलम से

शब्दों की गली से

गुजरता हुआ पहुँच जाता हूँ,

उसकी खिड़की के पास

सिर्फ उसके

एक दीदार के इंतजार में


इस उम्मीद में

कभी तो महसूस होगा

उसे मेरा दर्द

जो दर्द होते हुए भी मीठा है

सिर्फ उसकी चाहत में,

कभी तो महसूस होगी

उसे अपनी मोहब्बत

जो दबाये, वो बैठी है

अपने दिल के तहखाने में


कभी कलम पकड़ता हूँ

उसको लिखने के लिए,

कभी उसकी तस्वीर पकड़ता हूँ

उसको निहारने के लिए,

कभी खामोश रहता हूँ

अपनी बेधड़क धड़कनों

को सुनने के लिए,

कभी पहुँच जाता हूँ

मयखाने में

अपने दर्द को मय में

घुलाने के लिए,


एक आशिक हूँ

सरफिरा सा

फिरता रहता हूँ

तन्हा गलियों में

खुद को भूल जाने के लिए

बस तुझे कहीं से

ढूढ लाने के लिए ।।



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