एहसास ( 6 )
एहसास ( 6 )
नख से, शिख तक
दिल से,जुबां तक
त्वचा की, नस-नस में
खून के उबाल तक
लोग कहते हैं
आत्मा है, शरीर है
जानता हूँ, मैं ये
तुम्हारा एहसास है
एक बिम्ब है, एक चित्र है
कैनवास में उकेरी,तस्वीर जैसी।
एक परछाईं है, जो कुछ
इंगित करती जैसी
कौन है जो, कुछ-कुछ
दिखता हो जैसे
पर आभार से, है परे
भोर का सपना, हो जैसे ।।
अदृश्य अंदाज़ है
नि:शब्द का अंबार है
सभी को देखता हूँ,गुनता हूँ
समझ कुछ ना आये
सहेजता हूँ, सभी पलों को राह
बताये एहसास के साये
शरीर की सुंदरता, नहीं सब कुछ
तन की पवित्रता, भी है कुछ-कुछ
किसी का होना, नहीं अर्धसत्य
एहसास है आधार 'मधुर'यही पूर्ण सत्य ।।